इक दिन ऐसा होइगा, सब सूं पड़ै बिछोह।
राजा राणा छत्रपति, सावधान किन होइ॥
एक दिन ऐसा सभी का आता है, जब सबसे बिछुड़ना पड़ता है। फिर भी, ये बड़े-बड़े राजा और छत्र-धारी राणा क्यों जागते नहीं। एक-न-एक दिन अचानक आ जाने वाले उस दिन को वे क्यों याद नहीं कर रहे? संदेश यही है कि किसी भी तरह से ताकतवर हो जाएं मृत्यु तो आनी है।इसलिए ताकत का दंभ दूर रख जीवन जीएं।
‘कबीर' कहा गरबियौ, काल गहै कर केस।
ना जाणै कहां मारिसी, कै घरि कै परदेस॥
कबीर के मुताबिक यह दंभ कैसा? जबकि काल अपने हाथों में हर एक की चोटी पकड़े हुए है। क्या पता वह तुम्हें कहां और कब मार देगा। यह भी मालूम नहीं कि वह जगह घर होगा या कोई परदेस।
कबिरा गर्ब न कीजिये, और न हंसिये कोय।
अजहूं नाव समुद्र में, ना जाने का होय।।
यानी हर इंसान समुद्र रूपी संसार में जीवन रूपी नाव में बैठा है, इसलिए वह किसी भी हालात में ताकत, बल, सुख, सफलता पाकर अहंकार न करें, न ही उसके मद में दूसरों की हंसी उडाए या उपेक्षा, अपमान करे, क्योंकि न जाने कब काल रूपी हवा के तेज झोंके के उतार-चढ़ाव जीवन रूपी नौका को डूबो दे।
कहा कियौ हम आइ करि, कहा कहैंगे जाइ।
इत के भये न उत के, चाले मूल गंवाइ ॥
इसमें संत कबीर की चेतावनी है कि हर इंसान यह सोचे कि हमने इस दुनिया में आकर क्या किया? और भगवान के यहां जाकर क्या कहेंगे? ऐसे काम न हो जाएं कि न तो यहां के रहें और न वहां के ही। दोनों ही जगह बिगाड़ और मूल भी गवांकर इस दुनिया से बिदाई हो जाए।
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥
यानी मिट्टी कह रही है कुम्हार से कि तू क्या सोच रहा है तू मुझे अपने पैरों के तले रौंद रहा है। ये संसार नश्वर है। एक दिन ऐसा आएगा जब मैं तुझे रौंदूगी यानी ये झूठा घमंड छोड़ दे कि तू मुझे रौंद रहा है,जबकि वास्तविकता यह है कि तू मुझ से बना है और एक न एक दिन तुझे मुझमें ही मिलना है।
पोथी पढि़ पढि़ जग मुवा, पंडित हुआ न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होय।
पोथी पढ़-पढ़कर संसार में बहुत लोग मर गए, लेकिन विद्वान न हुए पंडित न हुए। जो प्रेम को पढ़ लेता है वह पंडित हो जाता है।
शब्द न करैं मुलाहिजा, शब्द फिरै चहुं धार।
आपा पर जब चींहिया, तब गुरु सिष व्यवहार।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि शब्द किसी का मुंह नहीं ताकता। वह तो चारों ओर निर्विघ्न विचरण करता है। जब शब्द ज्ञान से अपने पराए का ज्ञान होता है तब गुरु शिष्य का संबंध स्वत: स्थापित हो जाता है।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है, यदि कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा।
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या फेरो।
प्रेम-प्रेम सब कोइ कहैं, प्रेम न चीन्है कोय।
जा मारग साहिब मिलै, प्रेम कहावै सोय॥
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि प्रेम करने की बात तो सभी करते हैं पर उसके वास्तविक रूप को कोई समझ नहीं पाता। प्रेम का सच्चा मार्ग तो वही है जहां परमात्मा की भक्ति और ज्ञान प्राप्त हो सके।
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