दंतेवाड़ा. - राजू सोनी - आटा चक्की
जिसे पहाड़ी नाले के पानी की मदद से चलाता है, इसमें न तो बिजली की जरूरत पड़ती है, न ही मिट्टी तेल या डीजल जैसे किसी ईधन की। उसके प्रोजेक्ट की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रोजाना उसके पास दर्जन भर से ज्यादा ग्राहक गेहूं, चना, रागी, चावल पिसवाने पहुंचते हैं। एक दिन में 25 से 30 किलोग्राम अनाज की पिसाई का काम हो जाता है। इससे तेल-नमक का खर्च निकल जाता है। सफलता से उत्साहित राजू की इच्छा अब ऐसी ही पनचक्की बनाकर बिजली तैयार करने की है। उसका कहना है कि बेकार बह रहे पानी के इस्तेमाल से बिजलीविहीन गांवों में सिंचाई, आटा चक्की और बिजली की सुविधा दिलाई जा सकती है।
जिसे पहाड़ी नाले के पानी की मदद से चलाता है, इसमें न तो बिजली की जरूरत पड़ती है, न ही मिट्टी तेल या डीजल जैसे किसी ईधन की। उसके प्रोजेक्ट की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रोजाना उसके पास दर्जन भर से ज्यादा ग्राहक गेहूं, चना, रागी, चावल पिसवाने पहुंचते हैं। एक दिन में 25 से 30 किलोग्राम अनाज की पिसाई का काम हो जाता है। इससे तेल-नमक का खर्च निकल जाता है। सफलता से उत्साहित राजू की इच्छा अब ऐसी ही पनचक्की बनाकर बिजली तैयार करने की है। उसका कहना है कि बेकार बह रहे पानी के इस्तेमाल से बिजलीविहीन गांवों में सिंचाई, आटा चक्की और बिजली की सुविधा दिलाई जा सकती है।
कैसे काम करता है?
बढ़ईगिरी में महारत हासिल राजू ने लकड़ी का टर्बाइन नुमा यंत्र तैयार किया। पहाड़ी नाले के पानी को पाइप की मदद से टबाईन के साफ्ट पर गिराया जाता है। टर्बाइन के ऊपरी हिस्से में पत्थर की चक्की लगी हुई है, जो लगातार घूमती रहती है। चक्की की रफ्तार को नियंत्रित करने के लिए लकड़ी से ही पुर्जे बनाए हैं, जिनसे पानी के प्रवाह की दिशा तो बदलती ही है, चक्की के दो पाट के बीच गैप में भी बदलाव किया जा सकता है। इसके जरिए पिसने वाले आटे की मोटाई निर्धारित होती है।
साबुत चने की दाल निकालना हो, या फिर पीसकर बेसन बनाना हो, गेहूं से आटा तैयार करना हो या मैदे की तरह चिकना पीसना हो, इसी घुंडी से सेटिंग हो जाती है। अाधुनिक हालर मिल की तर्ज पर चक्की के ऊपरी सिरे में बांस से टोकरीनुमा इनलेट बनाया हुआ है, जिसमें पीसे जाने वाले गेहूं या चने को डाल दिया जाता है। चक्की के बीचों-बीच गिरने वाले अनाज या दाल को नियंत्रित करने के लिए भी लकड़ी के दो गुटके की मदद ली गई है, जो घूमती हुई चक्की से सटा होने की वजह से वाइब्रेट होकर अनाज को नीचे गिरने में मदद करते हैं।
धुन के पक्के राजू ने चित्रकोट में पत्थर की पारंपरिक चक्की बनाने वाले कारीगरों को ऑर्डर देकर डेढ़ फीट व्यास वाला चक्की बनवाया। वजन कम होने के कारण पर्याप्त प्रेशर नहीं बनता देख फिर से दूसरी चक्की बनवाई। अब चक्की से पिसाई आसानी से हो जाता है।
source : http://www.bhaskar.com/news-hf/CHH-RAI-grinding-machine-made-from-amazing-tricks-4957459-PHO.html?seq=1
0 comments :
Post a Comment